उत्तर – बस में जब पहली बार खराबी आई तो लेखक को चिंता हुई, पर जब खटारा बस में एक के बाद एक समस्या उत्पन्न होती गई तो अंत में लेखक ने समय से पन्ना पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी और परिस्थिति से समझौता कर लिया। इसलिए लेखक की चिंता जाती रही।
उत्तर – 'हर हिस्सा असहयोग कर रहा था' इस पंक्ति में लेखक ने यह व्यंग्य किया है कि चलते समय बस की पूरी बॉडी हिल रही थी। बस के कल-पुर्जे, बॉडी, सीट इत्यादि सभी हिल - रहे थे। वे ठीक से कसे हुए नहीं थे, जिससे उसमें तारतम्य का अभाव था और बस आवाज़ के साथ हिलते हुए आगे बढ़ रही थी।
उत्तर - बस की हालत बहुत खराब थी। बस की वर्तमान स्थिति देखते हुए इस प्रकार का आश्चर्य व्यक्त करना स्वाभाविक था। देखने से लग नहीं रहा था कि बस चलती भी होगी परन्तु जब लेखक ने बस के हिस्सेदार से पूछा तो उसने कहा चलेगी ही नहीं, अपने आप चलेगी।
उत्तर - कंपनी का हिस्सेदार टायर की स्थिति से परिचित होने के बावजूद भी बस को चलाने का साहस जुटा रहा था। वह अपनी पुरानी बस की खूब तारीफ़ कर रहा था। अर्थ मोह की वजह से आत्म बलिदान की ऐसी भावना दुर्लभ थी जिसे देखकर लेखक हतप्रभ हो गया और उसके प्रति उनके मन में श्रद्धा जाग गई।
उत्तर - जब बस चालक ने इंजन स्टार्ट किया तब सारी बस झनझनाने लगी। लेखक को ऐसा प्रतीत हुआ कि पूरी बस ही इंजन है। मानो वह बस के भीतर न बैठकर इंजन के भीतर बैठा हुआ हो। अर्थात् इंजन के स्टार्ट होने पर इंजन के पुर्जो की भांति बस के यात्री भी हिल रहे थे।
उत्तर – इस व्यंग्य कथन के माध्यम से लेखक ने कहा है कि बस कंपनी के हिस्सेदार को मालूम था कि बस के टायर घिसे - पिटे हैं और कभी भी दुर्घटना का कारण बन सकते हैं। उसे न तो स्वंय की जान की परवाह थी और न ही यात्रियों की जान की। उसने टायर बदलने का ज़रा विचार नहीं किया।
उत्तर – बस की जर्जर अवस्था से लेखक को ऐसा महसूस हो रहा था कि बस की स्टीयरिंग कहीं भी टूट सकती है तथा ब्रेक फेल हो सकता है। ऐसे में लेखक को डर लग रहा था कि कहीं उसकी बस किसी पेड़ से टकरा न जाए। एक पेड़ निकल जाने पर वह दूसरे पेड़ का इंतज़ार करता था कि बस कहीं इस पेड़ से न टकरा जाए। यही वजह है कि लेखक को हर पेड़ अपना दुश्मन लग रहा था।
उत्तर - ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ १९३० में सरकारी आदेशों का पालन न करने के लिए किया था। इसमें अंग्रेज़ी सरकार के साथ सहयोग न करने की भावना थी। लेखक ने ‘सविनय अवज्ञा’ का उपयोग बस के सन्दर्भ में किया है। वह इस प्रतीकात्मक भाषा के माध्यम से यह बताना चाह रहा है कि बस विनय पूर्वक अपने मालिक व यात्रियों से उसे स्वतंत्र करने का अनुरोध कर रही है।
उत्तर - बस की हालत बहुत खराब थी। उसका सारा ढाँचा बुरी हालत में था, अधिकतर शीशें टूटे पड़े थे। इंजन और बस की बॉडी का तो कोई तालमेल नहीं था। बस का कोई भरोसा नहीं था कि यह कब और कहाँ रूक जाए, शाम बीतते ही रात हो जाती है और रात रास्ते में कहाँ बितानी पड़ जाए, कुछ पता नहीं रहता। कई लोग पहले भी उस बस से सफ़र कर चुके थे। वो अपने अनुभवों के आधार पर ही लेखक व उसके मित्र को बस में न बैठने की सलाह दे रहे थे। उनके अनुसार यह बस डाकिन की तरह थी।
उत्तर – 'गज़ब हो गया, ऐसी बस अपने आप चलती है।' यह बात लेखक ने बस कंपनी के हिस्सेदार से बस में सवार होने से पहले कही क्योंकि बस अत्यधिक पुरानी और खटारा दिखाई दे रही थी।
'अगर इसका प्राणांत हो गया तो इस बियाबान में हमें इसकी अंत्येष्टि करनी पड़ेगी।' इस कथन के माध्यम से लेखक ने खराब बस पर व्यंग किया है। यदि खटारा बस सुनसान रास्ते पर चलते - चलते अचानक खराब हो गई तो यात्रियों को बड़े संकट का सामना करना पड़ेगा।
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