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      क्या निराश हुआ जाए

      प्रश्न / उत्तर

       

      प्रश्न-12   दोषों का पर्दाफ़ाश करना कब बुरा रूप ले सकता है?  

      उत्तर जब व्यक्ति दूसरों के दोषों में रस (आनंद) लेने लगते हैं। तथा केवल व्यक्ति के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करना ही अपना कर्तव्य समझते हैं। एवं उनकी अच्छाईयों को पूरी अनदेखा कर देते हैं तब दोषों का पर्दाफ़ाश करना बुरा रूप ले सकता है। क्योंकि तब मनुष्य केवल और केवल अन्य व्यक्तियों के दुर्गुणों को ही देखता है और दूसरों को भी दिखता है।

       

      प्रश्न-13   लेखक का मन कभी - कभी क्यों बैठ जाता है?

      उत्तर – समाचार - पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार भरे रहते हैं। आरोप -प्रत्यारोप का कुछ ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी ही नहीं रह गया है। हर व्यक्ति संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। जो जितने ही ऊँचे पद पर हैं उनमें उतने ही अधिक दोष दिखाए जाते हैं। यह सब देखकर लेखक का मन बैठ जाता है।



      प्रश्न-14   निम्नलिखित के संभावित परिणाम क्या - क्या हो सकते हैं? आपस में चर्चा कीजिए, जैसे - "ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है।" परिणाम - भ्रष्टाचार बढ़ेगा।

      . "सच्चाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है।" - तानाशाही बढ़ेगी

      . "झूठ और फरेब का रोज़गार करनेवाले फल - फूल रहे हैं।" - भ्रष्टाचार बढ़ेगा

      . "हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम।" - अविश्वास बढ़ेगा

       

      प्रश्न-15   लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है फिर भी वह निराश नहीं हैं। आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है?

      उत्तर - लेखक ने अपने व्यक्तित्व अनुभवों का वर्णन करते हुए कहा कि वह ठगा भी गया है, दोखा भी खाया है, परन्तु बहुत कम स्थलों पर विश्वासघात नाम की चीज़ मिलती है। लेखक का मानना है कि अगर वह केवल उन्हीं बातों का हिसाब रखेगा, जिनमें धोखा खाया है तो जीवन कष्टकर हो जाएगा और ऐसी घटनाएँ भी बहुत कम नहीं हैं जब लोगों ने अकारण उनकी सहायता की है, निराश मन को ढाँढस दिया है और हिम्मत बँधाई है।

       

      प्रश्न-16   लेखक ने लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ क्यों रखा होगा? क्या आप इससे भी बेहतर शीर्षक सुझा सकते हैं?

      उत्तरलेखक ने इस लेख का शीर्षकक्या निराश हुआ जाएउचित रखा है। आजकल हम अराजकता की जो घटनाऍ अपने आसपास घटते देखते रहते हैं। जिससे हमारे मन में निराशा भर जाती है। लेकिन लेखक हमें उस समय समाज के मानवीय गुणों से भरे लोगों को और उनके कार्यों को याद करने कहा है जिससे हम निराश हो। इसका अन्य शीर्षकउजाले की ओरभी रख सकते हैं।



      प्रश्न-17   टिकट बाबू के चेहरे पर संतोष की गरिमा क्यों थी?   

      उत्तर - एक बार रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए गलती से लेखक ने दस के बजाय सौ रूपये का नोट दिया और वह जल्दी - जल्दी गाड़ी में आकर बैठ गया। थोड़ी देर में टिकट बाबू सेकंड क्लास के डिब्बे में हर आदमी का चेहरा पहचानते हुए उपस्थित हुए और लेखक को विनम्रता के साथ नब्बे रूपये लौटा दिए। उस समय टिकट बाबू के चेहरे पर संतोष की गरिमा थी क्योंकि उन्होंने अपना काम ईमानदारी से किया और सम्बंधित व्यक्ति को ढूँढ़कर उसके बचे पैसे लौटा दिए।

       

      प्रश्न-18   बस ड्राइवर लेखक की ओर कातर दृष्टि से क्यों देख रहा था?   

      उत्तर - बस खराब हो जाने पर जब कंडक्टर उतर गया और एक साइकिल लेकर चलता बना तब लोगों को संदेह हो गया कि उन्हें धोखा दिया जा रहा है। इसी कारण डर और क्रोध के आवेश में आकर बस के यात्रियों ने ड्राइवर को घेर लिया, वे उसे पीटना एवं सज़ा देना चाहते थे और स्वंय को बचाने के लिए ड्राइवर लेखक की ओर कातर दृष्टि से देख रहा था। लेखक का शांतिपूर्ण व्यवहार देखकर उसे लगा कि लेखक उसे यात्रियों के गुस्से से बचा सकते हैं।