उत्तर - 'भगवान के डाकिए' कविता के रचयिता रामधारी सिंह 'दिनकर' जी हैं।
उत्तर - नहीं, बादल सीमाओं को नहीं मानते हैं।
उत्तर – भगवान के डाकिए पक्षी और बादल को कहा गया है।
उत्तर – एकता, भाईचारे और सप्रेम से मिलजुलकर रहने का संदेश देना चाहता है।
उत्तर - बादल और पक्षी प्रकृति में होने वाले परिवर्तन का संदेश लेकर आते हैं।
उत्तर - पक्षी और बादल द्वारा लाई गई चिट्ठियों को केवल पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, नदियाँ व पहाड़ ही पढ़ सकते हैं।
उत्तर - पक्षी और बादल की चिट्ठियों के आदान-प्रदान को हम प्रेम, सौहार्द और आपसी सद्भाव की दृष्टि से देख सकते हैं। यह हमें यहीं संदेश देते हैं।
उत्तर – एक देश की धरती अपने सुगंध व प्यार को पक्षियों के माध्यम से दूसरे देश को भेजकर सद्भावना का संदेश भेजती है। धरती अपनी भूमि में उगने वाले फूलों की सुगंध को हवा से और पानी को बादलों के रूप में भेजती है। हवा में उड़ते हुए पक्षियों के पंखों पर प्रेम-प्यार की सुगंध तैरकर दूसरे देश तक पहुँच जाती है। इस प्रकार एक देश की धरती दूसरे देश को सुगंध भेजती है।
उत्तर - कवि ने पक्षी और बादल को भगवान के डाकिए इसलिए बताया है क्योंकि जिस प्रकार डाकिए संदेश लाने का काम करते हैं, उसी प्रकार पक्षी और बादल भगवान का संदेश हम तक पहुँचाते हैं। इन संदेशों को मनुष्य इतनी आसानी से नहीं पढ़ अथवा समझ पाते परन्तु पेड़ - पौधे, नदी - सागर आदि इनके संदेशों को बड़ी सरलता से पढ़ लेते हैं।
उत्तर – पक्षी और बादल की चिट्ठियों में पेड़-पौधें, पानी और पहाड़ भगवान के भेजे एकता और सद्भावना के संदेश को पढ़ पाते हैं। तभी तो नदियाँ समान भाव से सभी लोगों में अपने जल को बाँटती है। पहाड़ भी सामान रूप से सबके साथ खड़ा होता है। हवा भी समान भाव से बहती हुई अपनी ठंडक, शीतलता व सुगन्ध को बाँटती है। पेड़-पौधें भी समान भाव से अपने फल, फूल व सुगन्ध को बाँटते हैं। ये सभी कभी भेदभाव नही करते। मानव को भी इनसे प्रेरणा लेकर प्रेम और सद्भावना को बढ़ाना चाहिए।
उत्तर - डाकिए का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। पहले की तुलना में बेशक डाकिए अब कम ही दिखाई देते हैं परन्तु आज भी गाँवों में डाकिए का पहले की तरह ही चिट्ठियों को आदान-प्रदान करते हुए देखा जा सकता है। चाहे कितना मुश्किल रास्ता हो, ये हमेशा हमारी चिट्ठियाँ हम तक पहुँचाते आए हैं। आज भी गाँवों में डाकियों को विशेष सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। गाँव की अधिकतर आबादी कम पढ़ी लिखी होती है परन्तु जब अपने किसी सगे-सम्बन्धी को पत्र व्यवहार करना होता है तो डाकिया उनका पत्र लिखने में मदद करते है। आज चाहे शहरों में चिट्ठी के द्वारा पत्र-व्यवहार न के बराबर हो पर ये डाकिए हमारे स्मृति-पटल में सदैव निवास करेगें।