Topic outline

    • द्धेष करनेवाले का जी नहीं भरता

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      प्रश्न / उत्तर

      प्रश्न-1  ब्राह्मणों ने दुर्योधन को कौन सा यज्ञ करने की सलाह दी? 

      उत्तर-  ब्राह्मणों ने दुर्योधन को वैष्णव नामक यज्ञ करने की सलाह दी।

       

      प्रश्न-2 पांडवों के वनवास के समय दुर्योधन की इच्छा कौन सा यज्ञ करने की थी?

      उत्तर – पांडवों के वनवास के समय दुर्योधन की इच्छा राजसूय यज्ञ करने की थी।

       

      प्रश्न-3 दुर्योधन राजसूय यज्ञ क्यों नहीं कर सकते थे?

      उत्तर – पंडितों ने अनुसार धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर के रहते हुए दुर्योधन राजसूय यज्ञ नहीं कर सकते थे।

       

      प्रश्न-4  कौन से ऋषि अपने शिष्यों के साथ दुर्योधन के राजभवन में पधारे? 

      उत्तर-  महर्षि दुर्वासा अपने दस हजार शिष्यों को साथ लेकर दुर्योधन के राजभवन में पधारे।

       

      प्रश्न-5  दुर्योधन के सत्कार से प्रसन्न होकर ऋषि दुर्वासा ने क्या कहा?

      उत्तर-  दुर्योधन के सत्कार से ऋषि बहुत प्रसन्न हुए और कहा-"वत्स, कोई वर चाहो, तो माँग लो।"

       

      प्रश्न-6  जब भीमसेन खाने का निमंत्रण देने गए तब दुर्वासा ऋषि ने क्या कहा?

      उत्तर- दुर्वासा ने भीमसेन से कहा-"हम सब तो भोजन कर चुके हैं। युधिष्ठिर से जाकर कहना कि असुविधा के लिए हमें क्षमा करें।"



      प्रश्न-7  शिष्य दुर्वासा से क्या कह रहे थे?

      उत्तर-  शिष्य दुर्वासा से कह रहे थे–“गुरुदेव! युधिष्ठिर से हम व्यर्थ में कह आए कि भोजन तैयार करके रखें। हमारा तो पेट भरा हुआ है। हमसे उठा भी नहीं जाता। इस समय तो हमारी जरा भी खाने की इच्छा नहीं है।"

       

      प्रश्न-8  द्रौपदी की चिंतित होने का क्या कारण था?

      उत्तर-  जिस समय दुर्वासा ऋषि आए, उस समय सभी को खिला-पिलाकर द्रौपदी भी भोजन कर चुकी थी और सूर्य का अक्षयपात्र उस दिन के लिए खाली हो चुका था। इसीलिए द्रौपदी बड़ी चिंतित हो उठी।

       

      प्रश्न-9 किसने किससे  कहा?

      i. “वत्स, कोई वर चाहो, तो माँग लो।”

      महर्षि दुर्वासा ने दुर्योधन से कहा।

      ii. “ज़रा लाओ तो अपना अक्षयपात्र। | देखें कि उसमें कुछ है भी या नहीं।”

      श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा।

       

      प्रश्न-10  दुर्योधन ने ऋषि दुर्वासा से क्या प्रार्थना की?

      उत्तर-  दुर्योधन बोला-“मुनिवर! प्रार्थना यही है कि जैसे आपने शिष्यों-समेत अतिथि बनकर मुझे अनुगृहीत किया है, वैसे ही वन में मेरे भाई पांडवों के यहाँ जाकर उनका भी सत्कार स्वीकार करें और फिर एक छोटी सी बात मेरे लिए करने की कृपा करें। वह यह कि आप अपने शिष्यों समेत ठीक ऐसे समय युधिष्ठिर के आश्रम में जाएँ, जब द्रौपदी पांडवों एवं उनके परिवार को भोजन करा चुकी हों और जब सभी लोग आराम से बैठे विश्राम कर रहे हों।"

       

      प्रश्न-11  किसने और कैसे द्रौपदी की चिंता दूर की?

      उत्तर-   उसी समय श्रीकृष्ण कहीं से आ गए और द्रौपदी से बोले उन्हें भूख लगी है। उन्होंने द्रौपदी से अक्षयपात्र माँगा। जब उन्होंने उसमे देखा तो उसके एक छोर पर अन्न का एक कण और साग की पत्ती लगी हुई थी। श्रीकृष्ण ने उसे लेकर मुँह में डालते हुए मन में कहा-"यह भोजन हो, इससे उनकी भूख मिट जाए।" इस प्रकार दुर्वासा ऋषि और उनके शिष्यों का पेट भर गया और ऋषि अपने शिष्यों सहित वहाँ से रवाना हो गए।

       

      प्रश्न-12 युधिष्ठिर को अक्षयपात्र किसने दिया था और उसकी क्या विशेषता थी? उत्तर - वनवास के प्रारंभ में युधिष्ठिर से प्रसन्न होकर सूर्य ने उन्हें एक अक्षयपात्र प्रदान किया था और कहा था कि बारह बरस तक इसके द्वारा मैं तुम्हें भोजन दिया करूंगा। | इसकी विशेषता यह थी कि द्रौपदी हर रोज चाहे जितने लोगों को इस पात्र में से भोजन खिला सकेगी; परंतु सबके भोजन कर लेने पर जब द्रौपदी स्वयं भी भोजन कर चुकेगी, तब इस बरतन की यह शक्ति अगले दिन तक के लिए लुप्त हो जाएगी।