Topic outline

    • द्धेष करनेवाले का जी नहीं भरता

      (Page 46)

       

       

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      प्रश्न / उत्तर

      प्रश्न-1 कौन दुर्योधन की चापलूसी किया करते थे?

      उत्तर – कर्ण और शकुनि दुर्योधन की चापलूसी किया करते थे।

       

      प्रश्न-2 धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को वन जाने की अनुमति क्यों दे दी?

      उत्तर – दुर्योधन ने विश्वास दिलाया कि पांडव जहाँ होंगे, वहाँ वे सब नहीं जाएँगे और बड़ी सावधानी से काम लेंगे। विवश होकर धृतराष्ट्र ने अनुमति दे दी।

       

      प्रश्न-3  दुर्योधन ने कर्ण के सामने अपनी कौन सी इच्छा प्रकट की? 

      उत्तर-  दुर्योधन कर्ण से कहा-“कर्ण, मैं तो चाहता हूँ कि पांडवों को मुसीबतों में पड़े हुए  अपनी आँखों से देखूँ। इसलिए तुम और मामा शकुनि कुछ ऐसा उपाय करो कि वन में जाकर पांडवों को देखने की पिता जी से अनुमति मिल जाए।"

       

      प्रश्न-4  धृतराष्ट्र को पांडवों के हाल-चाल के बारे में किस प्रकार पता चला और उन्हें वह जानकर कैसा लगा? 

      उत्तर-  पांडवों के वनवास के दिनों में कई ब्राह्मण उनके आश्रम गए थे। वहाँ से लौटकर वे हस्तिनापुर पहुँचे और धृतराष्ट्र को पांडवों के हाल-चाल सुनाए। धृतराष्ट्र ने जब यह सुना कि पांडव वन में बड़ी तकलीफें उठा रहे हैं, तो उनके मन में चिंता होने लगी।

       

      प्रश्न-5  कर्ण ने दुर्योधन को वन में जाकर पांडवों को देखेने का कौन सा उपाय बताया?

      उत्तर-  कर्ण ने दुर्योधन को बताया कि द्वैतवन में कुछ बस्तियाँ हैं, जो उनके अधीन हैं। हर साल उन बस्तियों में जाकर चौपायों की गणना करना राजकुमारों का ही काम होता है। बहुत समय से यह प्रथा चली आ रही है। इसलिए उस बहाने हम पिता जी की अनुमति आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।



      प्रश्न-6  गंधर्वो और कौरवों के बिच घोर संग्राम का क्या परिणाम निकला?

      उत्तर-  अकेला दुर्योधन लड़ाई के मैदान में अंत तक डटा रहा। गंधर्वराज चित्रसेन ने उसे पकड़ लिया। जब युधिष्ठिर ने सुना कि दुर्योधन व उसके साथी अपमानित हुए हैं, तो उसने भीमसेन को किसी भी तरह से अपने बंधुओं को गंधर्वो के बंधन से छुड़ा लाने को कहा। युधिष्ठिर के आग्रह पर भीम और अर्जुन ने कौरवों को गंधर्वराज से बंधनमुक्त करा लिया।

       

      प्रश्न-7 गंधर्वो और कौरवों की सेनाएँ के बिच घोर संग्राम छिड़ने का क्या कारण था?

      उत्तर - गंधर्वराज चित्रसेन भी अपने परिवार के साथ उसी जलाशय के तट पर डेरा डाले हुए था। दुर्योधन के अनुचर जलाशय के पास गए और किनारे पर तंबू गाड़ने लगे। इस पर गंधर्वराज के नौकर बहुत बिगड़े और दुर्योधन के अनुचरों की उन्होंने खूब खबर ली। वे कुछ न कर सके और अपने प्राण लेकर भाग खड़े हुए। दुर्योधन को जब इस बात का पता चला, तो उसके क्रोध की सीमा न रही। वह अपनी सेना लेकर तालाब की ओर बढ़ा। वहाँ पहुँचना था कि गंधर्वो और कौरवों की सेनाएँ आपस में भिड़ गईं। घोर संग्राम छिड़ गया।