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      टोपी

      प्रश्न / उत्तर

       

      प्रश्न-13 गवरइया और गवरा के बीच किस बात पर बहस हुई और गवरइया को अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर कैसे मिला?

      उत्तर – आदमी के कपड़े पहनने की बात को लेकर ‘गवरइया’ और ‘गवरा’ में बहस हुई। गवरहया को आदमी का रंग बिरंगे कपड़े पहनना अच्छा लगता था। जबकि गवरा का कहना था कि कपड़े पहनने से आदमी की असली खुबसूरती कम हो जाती है, उसकी कुदरती ख़ूबसूरती ढँक जाती है। उसी बहस के दौरान गवरइया ने अपनी टोपी पहनने की इच्छा को व्यक्त किया। गवरइया को अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर तब मिला जब उसे घूरे पर चुगते-चुगते रुई का एक फाहा मिला।



      प्रश्न-14 टोपी पहनकर गवरइया राजा को दिखाने क्यों पहुँची जबकि उसकी बहस गवरा से हुई और वह गवरा के मुँह से अपनी बड़ाई सुन चुकी थी। लेकिन राजा से उसकी कोई बहस हुई ही नहीं थी। फिर भी वह राजा को चुनौती देने को पहुँची। कारण का अनुमान लगाइए।

      उत्तर – टोपी पहनकर गवरइया राजा को दिखाने पहुँची जबकि उसकी बहस गवरा से हुई और वह गवरा के मुँह से अपनी बड़ाई सुन चुकी थी। लेकिन राजा से उसकी कोई बहस हुई ही नहीं थी। फिर भी वह राजा को चुनौती देने को पहुँची क्योंकि बहस के दौरान गवरा ने गवरइया से कहा था कि टोपी तो आदमियों के राजा पहनते हैं। यह बात उसे अच्छी नहीं लगी थी। गवरा के इसी बात को गलत साबित करने के लिए गवरइया टोपी पहनकर राजा के पास गई।

       

      प्रश्न-15 टोपी बनवाने के लिए गवरइया किस किस के पास गई? टोपी बनने तक के एक−एक कार्य को लिखें।

      उत्तर – गवरइया अपनी टोपी बनवाने के लिए निम्नलिखित लोगो के पास गई:

      1.     गवरइया रूई का फाहा लेकर सबसे पहले धुनिया के पास गई, ताकि वह रूई का धुनने का काम कर दे।

      2.     धुनी हुई रूई से सूत कतवाने के लिए वह कोरी के पास गई।

      3.     उस लच्छेदार सूत को लेकर वह उसका कपडा बनवाने के लिए एक बुनकर के पास गई।

      4.  बुने हुए कपड़े को लेकर वह दर्जी के पास गई ताकि उससे टोपी सिलवा सके। दर्जी ने उस टोपी में पाँच फुँदने भी लगा दिए, जिससे टोपी की सुंदरता और बढ़ गई।



      प्रश्न-16 गवरइया के स्वभाव से यह प्रमाणित होता है कि कार्य की सफलता के लिए उत्साह आवश्यक है। सफलता के लिए उत्साह की आवश्यकता क्यों पड़ती है, तर्क सहित लिखिए।

      उत्तर – सफलता के लिए उत्साह आवश्यक है। कहा भी गया है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत। उत्साह से ही हमारे मन में किसी भी कार्य के प्रति जागरूकता उत्पन्न होती है। यदि हम किसी भी कार्य को बेमन से करेंगे तो निश्चय ही हमें उस कार्य में पूर्णतया सफलता नहीं मिलेगी।

      कहानी में गवरइया के मन में बस एक बार ही टोपी पहनने का ख्याल आया था परन्तु उसने निश्चय कर लिया था कि चाहे जो भी हो जाए वह टोपी तो पहनकर रहेगी। तभी घूरे पर चुगते हुए उसे रुई का फाहा मिला। उसने सोचकर एक कदम बढ़ा दिया था। अगली मंजिल उसे अपने आप मिलती चली गई। गवरइया में टोपी पहनने का उत्साह था। वो गवरे के कहने पर भी हताश नहीं हुई। उसने अपनी इच्छा को जगाए रखा। धुनिये, कोरी, बुनकर और दर्जी ने काम करने से ना भी किया लेकिन गवरइया ने उन्हें अच्छा प्रस्ताव देकर मना लिया। अंत में उसकी टोपी पहनने की इच्छा पुरी हुई।



      प्रश्न-17 गवरइया और गवरे की बहस के तर्कों को एकत्र करें और उन्हें संवाद के रूप में लिखें।

      उत्तर – गवरइया :- “आदमी को देखते हो? कैसे रंगबिरंगे कपड़े पहनते हैं। कितना फबता है उन पर कपड़ा।

      गवरा :- “खाक फबता है। कपड़ा पहन लेने के बाद तो आदमी और बदसूरत लगने लगता है।

      गवरइया :- “लगता है आज लटजीरा चुग गए हो?”

      गवरइया :- “कपड़े केवल अच्छा लगने के लिए नहीं मौसम की मार से बचने के लिए भी पहनता है आदमी।

      गवरा :- “तू समझती नहीं। कपड़े पहनपहन कर जाड़ागरमीबरसात सहने की उनकी सकत भी जाती रही है और कपड़ा पहनते ही पहनने वाले की औकात पता चल जाता है।

      गवरइया :- “फिर भी आदमी कपड़ा पहनने से बाज़ नहीं आता। नित नएनए लिबास सिलवाता रहता है।

      गवरा :– “यह निरा पोंगापन है। अपन तो नंगे ही भले।

      गवरइया :- “उनके सिर पर टोपी कितनी अच्छी लगती है। मेरा भी मन टोपी पहनने का करता है।

      गवरा :- “टोपी तू पाएगी कहाँ से। टोपी तो आदमियों का राजा पहनता है। मेरी मान तो तू इस चक्कर में पड़ ही मत।


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