उत्तर – 'जहाँ पहिया है' के लेखक पी. साईनाथ जी हैं।
उत्तर – 'पुडुकोट्टई' तमिलनाडु राज्य में है।
उत्तर – लेखक जंजीरों द्वारा रूढ़िवादी प्रथाओं की ओर इशारा कर रहा है।
उत्तर – अगर दस वर्ष से कम उम्र की लड़कियों को अलग कर दें तो यहाँ ग्रामीण महिलाओं के एक चौथाई हिस्से ने साइकिल चलाना सीख लिया है।
उत्तर – 'साइकिल ने महिलाओं को बनाया स्वतंत्र' भी इस पाठ का उपयुक्त नाम हो सकता है क्योंकि साइकिल ने पुडुकोट्टई की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया है।
उत्तर – साइकिल बिना ईंधन के और बिना शोरगुल के चलती है। यह पर्यावरण को दूषित भी नहीं करती है। रास्ता कैसा भी हो यह चलने के लिए तैयार रहती है। इन्हीं कारणों से साइकिल को विनम्र सवारी कहा गया है।
उत्तर – 'पुडुकोट्टई' स्थान का वर्णन पाठ में इसलिए किया गया है क्योंकि यहाँ की महिलाओं ने अपनी स्वाधीनता, आज़ादी और गतिशीलता को अभिव्यक्त करने के लिए प्रतीक के रूप में साइकिल को चुना है।
उत्तर – साइकिल चलाने से फातिमा और पुडुकोट्टई की महिलाओं को ‘आज़ादी‘ का अनुभव इसलिए होता होगा क्योंकि वह कहीं भी जाने के लिए किसी पर निर्भर नहीं थी।
उत्तर – साइकिल चलाना ग्रामीण महिलाओं के लिए इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि साइकिल चलाने से वह स्वतंत्र महसूस करती हैं। वह कई घरेलू कार्य इसकी मदद से कम समय में कर लेती हैं। वह कहीं जाने के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहती।
उत्तर – प्रारंभ में लोगों ने साइकिल चलाने वाली महिलाओं पर फब्तियाँ कसीं। लोगों ने उनके उत्साह को तोड़ने का बहुत प्रयास किया। लेड़ीज साइकिल पर्याप्त संख्या में उपलब्ध न होने के कारण महिलाओं को जेंटस साइकिलें खरीदनी पड़ती थी।
उत्तर – लेखक द्वारा दिया गया शीर्षक बिलकुल उपयुक्त है। पहिए को गतिशीलता का प्रतीक माना जाता है और पुडुकोट्टई की महिलाओं ने अपनी स्वाधीनता, आज़ादी और गतिशीलता को अभिव्यक्त करने के लिए प्रतीक के रूप में साईकिल को चुना है।
उत्तर – 1992 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हैंडल पड़ झाड़ियाँ लगाए, घंटियाँ बजाते हुए साइकिल पर सवार 1500 महिलाओं ने पुडुकोट्टई में तूफ़ान ला दिया। महिलाओं की साइकिल चलाने की इस तैयारी ने यहाँ रहनेवालों को हक्का - बक्का कर दिया।