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    • सुदामा चरित 

      प्रश्न / उत्तर

       

      प्रश्न-8 द्रुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी थे, इनकी मित्रता और शत्रुता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के कथानक से तुलना कीजिए।

      उत्तर – कृष्ण और सुदामा साथ-साथ आश्रम शिक्षा ग्रहण करते थे। उसी प्रकार महाराज द्रुपद तथा गुरू द्रोणाचार्य भी आश्रम में एक ही साथ शिक्षा ग्रहण करते थे तथा परम मित्र थे। सुदामा के द्वारका जाने पर श्रीकृष्ण ने उनका आदर-सत्कार किया था। परन्तु जब गुरू द्रोणाचार्य अपने मित्र राजा द्रुपद के पास गए तब राजा द्रुपद ने उनका अपमान किया। महाभारत के युद्ध में द्रुपद तथा गुरू द्रोणाचार्य ने एक दूसरे के विपरीत युद्ध करके दुश्मनी का परिचय दिया।



      प्रश्न-9 द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे थे? सुदामा के मन की दुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।

      उत्तर – सुदामा जिस उम्मीद से कृष्ण से मिलने गये थे, उसका कुछ भी नहीं हुआ। कृष्ण के पास से वे खाली हाथ लौट रहे थे। लौटते समय सुदामा थोड़े खिन्न भी थे और सोच रहे थे कि कृष्ण को समझना मुश्किल है। एक तरफ तो उसने इतना सम्मान दिया और दूसरी ओर मुझे खाली हाथ लौटा दिया। मैं तो जाना भी नहीं चाहता था, लेकिन पत्नी ने मुझे जबरदस्ती कृष्ण से मिलने भेज दिया था। जो अपने बचपन में थोड़े से मक्खन के लिए घर-घर भटकता था उससे कोई उम्मीद करना ही बेकार है।

       

      प्रश्न-10 निर्धनता के बाद मिलनेवाली संपन्नता का चित्रण कविता की अंतिम पंक्तियों में वर्णित है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।

      उत्तर – श्री कृष्ण की कृपा से सुदामा की दरिद्रता दूर हो गई थी। निर्धनता के बाद मिलने वाली संपन्नता देख खुद सुदामा भी हैरान थे। जहाँ सुदामा की टूटी-फूटी सी झोपड़ी रहा करती थी, वहाँ अब सोने का महल खड़ा है। कहाँ पहले पैरों में पहनने के लिए चप्पल तक नहीं थी, वहाँ अब घूमने के लिए हाथी घोड़े हैं, पहले सोने के लिए केवल यह कठोर भूमि थी और अब शानदार नरम-मुलायम बिस्तरों का इंतजाम है, कहाँ पहले खाने के लिए चावल भी नहीं मिलते थे और आज प्रभु की कृपा से खाने को दाख (किशमिश-मुनक्का) भी उप्लब्ध हैं। परन्तु वे अच्छे नहीं लगते।



      प्रश्न-11 “चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।”
      (क) उपर्युक्त पंक्ति कौन, किससे कह रहा है?
      (ख) इस कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।
      (ग) इस उपालंभ (शिकायत) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है?

      उत्तर – (क) उपर्युक्त पंक्ति श्रीकृष्ण अपने बालसखा सुदामा से कह रहे हैं।

      (ख) सुदामा की पत्नी ने श्रीकृष्ण के लिए भेंट स्वरूप कुछ चावल भिजवाए थे, लेकिन कृष्ण के राजसी ठाट-बाट को देखकर सुदामा उन्हें चावल देने में संकोच कर रहे थे। सुदामा चावल की पोटली को कृष्ण की नजरों से छुपाने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन कृष्ण ने उन्हें पकड़ लिया। श्रीकृष्ण सुदामा पर दोषारोपण करते हुए इसे चोरी कहते हैं और कहते हैं कि चोरी में तो तुम पहले से ही निपुण हो।

      (ग) इस उपालंभ के पीछे एक पौरोणिक कथा है। बचपन में जब कृष्ण और सुदामा साथ-साथ आश्रम में अपनी-अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। तभी एकबार गुरुमाता ने श्रीकृष्ण और सुदामा को जंगल से लकड़ियां लाने के लिए भेजा। गुरूमाता ने उन्हें साथ में रास्ते में खाने के लिए चने भी दिए थे। सुदामा श्रीकृष्ण को बिना बताए चोरी से चने खा लेते हैं। उसी चोरी की तुलना करते हुए श्रीकृष्ण सुदामा को दोष देते हैं।


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