उत्तर - साधु से ज्ञान की बातें पूछनी चाहिए।
उत्तर - घास कष्टप्रद तब बन जाती है जब घास का सूखा तिनका आँख में चला जाता है।
उत्तर - यहाँ ‘आपा’ अंहकार के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। ‘आपा’ घमंड का अर्थ देता है।
उत्तर - जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।
उत्तर – आपा का अर्थ 'अपना अस्तित्व' है और आत्मविश्वास का अर्थ है 'स्वयं पर विश्वास'।
आपा का अर्थ 'अपना अस्तित्व' है और उत्साह का अर्थ है 'उमंग'।
उत्तर - "आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए, वही एक की एक।।"
एकसमान होने के लिए आवश्यक है कि सब के विचार एक जैसे हों।
उत्तर – साखी शब्द संस्कृत के शब्द साक्षी का तदभव रूप है। इसका अर्थ है - प्रमाण। साखी में जीवन मूल्य तथा सत्य चित्रण किया गया है। कबीर ने अपने अनुभवों को दोहों के रूप में कहा है। प्रामाणिक होने के कारण ही कबीर के दोहों को साखी कहा जाता है।
उत्तर - कबीर के सखियाँ हमें यह संदेश देती हैं कि हमें साधु से उनकी जाति न पूछ कर उनसे ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। किसी से भी हमें कटु वचन नहीं बोलना चाहिए। ईश्वर की भक्ति हमें स्थिर मन से करना चाहिए। हमें अपना स्वभाव शांत रखना चाहिए और सभी को समान भाव से देखना चाहिए।
उत्तर - कबीरदास जी के अनुसार हमें कभी भी अहंकार वश किसी भी वस्तु को निम्न समझकर उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि समय आने पर वही छोटी वस्तु बड़े कष्ट का कारण बन सकती है। हर एक में कुछ न कुछ अच्छाई होती है। अत: हमें सबका सम्मान करना चाहिए।
उत्तर - ‘तलवार का महत्व होता है, म्यान का नहीं’ से कबीर यह कहना चाहता है कि हमें किसी भी वस्तु के आंतरिक गुणों को महत्व देना चाहिए नाकि बाहरी सुंदरता को। उसी प्रकार किसी व्यक्ति की पहचान उसके गुणों एवं ज्ञान से होती हैं नाकि कुल, जाति, धर्म आदि से। ज्ञान के आगे जाति का कोई अस्तित्व नहीं है।
उत्तर - इस पंक्ति के द्वारा संत कबीर जी कहते हैं कि केवल मुख से हरी का जाप करने से या हाथ में माला फेरने मात्र से ही ईश्वर का स्मरण नहीं होता है। यदि हमारा मन चारों दिशाओं में भटक रहा है और मुख से हरि का नाम ले रहे हैं तो वह सच्ची भक्ति नहीं है। ईश्वर की सच्ची भक्ति तो मन को स्थिर रखकर भगवान का सुमिरन करते हुए ही संभव है।