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      क्या निराश हुआ जाए

      प्रश्न / उत्तर

       

      प्रश्न-19   "आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत कठिन है।” क्या आप इस बात से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

      उत्तर "आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत कठिन है।” मैं इस कथन से पूरी तरह सहमत हूँ और उपरोक्त कथन पूरी तरह से सही भी है। आदर्श अर्थात अच्छी आदतें या बातें। जैसे - सच बोलना, धोखा न देना, अपशब्दों का प्रयोग न करना आदि। किन्तु जीवन में छोटी सी परेशानी अथवा कठिनाई के आने पर हम आदर्शो को भूल कर सरलता से मिलने वाले समाधान की ओर आकर्षित हो जाते हैं तथा उसी ओर बढ़ जाते हैं।

       

      प्रश्न-20   'महान भारतवर्ष को पाने की संभावना बनी हुई है, बनी रहेगी।' इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?   

      उत्तर उपरोक्त कथन लेखक के भारतवर्ष के प्रति अच्छे विचारों का प्रतीक है। निरंतर बुराईयों के बीच घिरे रहने के पश्चात भी लेखक निराश नहीं होते बल्कि अपने जीवन में घटने वाली सच्ची और अच्छी घटनाओं से आशान्वित होकर वे ऐसा मानते हैं कि मेरे भारतवर्ष से महानता, सच्चाई और अच्छाई अभी पूरी तरह से नष्ट नहीं हुई है। अभी भी भारत वर्ष में सच्चे, ईमानदार व्यक्तियों के कारण सच्चाई और अच्छाई जैसे गुण विद्यमान हैं जो की हमारे भारतवर्ष को महान बनाने में सहायक होंगे।



      प्रश्न-21   आजकल के बहुत से समाचार पत्र या समाचार चैनल ‘दोषों का पर्दाफ़ाश’ कर रहे हैं। इस प्रकार समाचारों और कार्यक्रमों की सार्थकता पर तर्क सहित विचार लिखिए।

      उत्तर टीवी चैनल व समाचार पत्रों द्वारा जो ‘दोषों का पर्दाफ़ाश’ किया जा रहा है वो पहले किसी सीमा तक सही हुआ करता था। परन्तु, आज टीवी चैनलों और समाचार पत्रों की भरमार के कारण उनके बीच में जनमें श्रेष्ठ-दिखाने-की-होड़ ने इसे धंधा बना दिया है। इससे लोग दोनों पक्षों की सच्चाई जाने बिना ही अपनी तरफ़ से दोषारोपण आरम्भ कर देते हैं। इस बात को तनिक भी नहीं सोचते कि इससे किसी के जीवन पर बुरा असर पड़ सकता है। समाचार पत्र और चैनल सिर्फ अपनी T.R.P. का ही ध्यान रखते हैं। सच तो जैसे कुछ होता ही नहीं है।

       

      प्रश्न-22   'मेरे मन! निराश होने की ज़रूरत नहीं।' ये पंक्ति किसने कही और क्यों? पंक्ति की सार्थकता सिद्ध करते हुए पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए।

      उत्तर - मेरे मन! निराश होने की ज़रूरत नहीं।' यह पंक्ति ' क्या निराश हुआ जाए 'पाठ के लेखक 'श्री हजारी प्रसाद दिववेदी जी' ने कही है। उनका मानना है कि जीवन में चाहे हमें निरंतर दोखा मिले अथवा हमारे समाज में चरों ओर दोषों और आरोपों का अंबार लगा क्यों हो परन्तु हमारे जीवन में घटित होने वाली कुछ अच्छी घटनाएँ हमें यह मानने पर मजबूर करती हैं कि अभी निराश होने की ज़रूरत नहीं। इस पंक्ति को लेखक ने अपने जीवन में घटी दो घटनाओं का उदाहरण देकर सत्य साबित किया है। पहला टिकट बाबू द्वारा बचे हुए पैसे लेखक को लौटाना और दूसरा बस कंडक्टर द्वारा दूसरी बस व बच्चों के लिए दूध लाना।



      प्रश्न-23   दो शब्दों के मिलने से समास बनता है। समास का एक प्रकार हैद्वंद्व समास। इसमें दोनों शब्द प्रधान होते हैं। जब दोनों भाग प्रधान होंगे तो एक-दूसरे में द्वंद्व (स्पर्धा, होड़) की संभावना होती है। कोई किसी से पीछे रहना नहीं चाहता, जैसेचरम और परम = चरम-परम, भीरु और बेबस = भीरू-बेबस। दिन और रात = दिन-रात।
      औरके साथ आए शब्दों के जोड़े कोऔरहटाकर (-) योजक चिह्न भी लगाया जाता है। कभी-कभी एक साथ भी लिखा जाता है। द्वंद्व समास के बारह उदाहरण ढूँढ़कर लिखिए।

      उत्तर - सुख और दुख - सुख-दुख

      भूख और प्यास - भूख-प्यास

      हँसना और रोना - हँसना-रोना

      आते और जाते - आते-जाते

      राजा और रानी - राजा-रानी

      चाचा और चाची - चाचा-चाची

      सच्चा और झूठा - सच्चा-झूठा

      पाना और खोना - पाना-खोना

      पाप और पुण्य - पाप-पुण्य

      स्त्री और पुरूष - स्त्री-पुरूष

      राम और सीता - राम-सीता

      आना और जाना - आना-जाना