उत्तर – 'क्या निराश हुआ जाए' पाठ के लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी जी हैं।
उत्तर – मेरे विचार से हमारे महान विद्वानों ने महान संस्कृति सभ्य भारत का सपना देखा था।
उत्तर – अच्छाई में रस लेकर उसे उजागर न करना और भी बुरी बात है क्योंकि सैकड़ों घटनाएँ ऐसी घटती हैं जिन्हें उजागर करने से लोक - चित्त में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना जगती है।
उत्तर - लोभ - मोह, काम - क्रोध आदि विचार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विधमान रहतें हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बुरा आचरण है।
उत्तर – भारतवर्ष ने भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया है क्योंकि उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान आंतरिक गुण स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है।
उत्तर - ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलानेवाले निरीह और भोले - भाले श्रमजीवी को पिसते और झूठ तथा फ़रेब का रोज़गार करनेवालों को फलता - फूलता देखकर महान मूल्यों के प्रति हमारी आस्था हिलने लगी है।
उत्तर – कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपने प्रार्थना गीत में भगवान से प्रार्थना की थी कि संसार में केवल नुक्सान ही उठाना पड़े, धोखा ही खाना पड़े तो ऐसे अवसरों पर भी हे प्रभो! मुझे ऐसी शक्ति दो कि मैं तुम्हारे ऊपर संदेह न करूँ।
उत्तर – 'मानव महा - समुद्र' से लेखक का आशय भारत वर्ष में रहने वाले विभिन्न जाति एवं धर्म के मनुष्यों से है जो अलग - अलग स्थानों से आए हैं तथा अपने साथ तरह - तरह के जीवन मूल्य एवं आदर्श लाए हैं।
उत्तर – ‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद मैं प्रश्न चिन्ह ‘क्या निराश हुआ जाए?’ लगाना उचित समझता हूँ। समाज में व्याप्त बुराइयों के बीच रहते हुए भी जीवन जीने के लिए सकारात्मक दृष्टि जरूरी है।
उत्तर - भारतवर्ष सदा कानून को धर्म के रूप में देखता आ रहा है। आज एकाएक कानून और धर्म में अंतर कर दिया गया है। धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता, कानून को दिया जा सकता है। यही कारण है कि जो लोग धर्मभीरु हैं, वे कानून की त्रुटियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते।
उत्तर – व्यक्तिवाचक संज्ञा: रबींद्रनाथ टैगोर, मदनमोहन मालवीय, तिलक, महात्मा गाँधी आदि।
जातिवाचक संज्ञा: बस, यात्री, मनुष्य, ड्राइवर, कंडक्टर, हिन्दू, मुस्लिम, आर्य, द्रविड़, पति, पत्नि आदि।
भाववाचक संज्ञा: ईमानदारी, सच्चाई, झूठ, चोर, डकैत आदि।