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      शांतिदूत श्रीकृष्ण

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      Image from NCERT book



      प्रश्न / उत्तर

      प्रश्न-1  कर्ण रोज संध्या-वंदन कहाँ किया करता था?

      उत्तर- कर्ण गंगा के किनारे रोज संध्या-वंदन किया करता था।

       

      प्रश्न-2 कर्ण की बातें सुनकर कुंती की क्या दशा हुई?

      उत्तर – कर्ण की सारी बातें सुनकर माता कुंती का मन बहुत विचलित हुआ, परंतु उन्होंने उसे अपने गले से लगा लिया और आशीर्वाद देकर कुंती अपने महल में चली आई।

       

      प्रश्न-3 धृतराष्ट्र ने गांधारी को सभा में लाने को क्यों कहा?

      उत्तर – धृतराष्ट्र ने गांधारी को सभा में लाने को इसलिए कहा क्योंकि धृतराष्ट्र जानते थे कि गांधारी समझ बहुत स्पष्ट है और वह दूर की सोच सकती है। हो सकता है, उसकी बातें दुर्योधन मान ले।

       

      प्रश्न-4  कर्ण ने कुंती को क्या आश्वासन दिया? 

      उत्तर - कर्ण ने कुंती को आश्वासन देते हुए कहा "अब मैं यह करूंगा कि अर्जुन को छोड़कर और किसी पांडव के प्राण नहीं लूंगा। या तो अर्जुन इस युद्ध में काम आएगा, या मैं। दोनों में से एक को तो मरना ही पड़ेगा। शेष चारों पांडव मुझे चाहे कितना भी तंग करें, मैं उनको नहीं मारूंगा। माँ, तुम्हारे तो पाँच पुत्र हर हालत में रहेंगे, चाहे मैं मर जाऊँ, चाहे अर्जुन। हम दोनों में से एक बचेगा और बाकी चार तो रहेंगें ही। तुम चिंता करो।

       

      प्रश्न-5  कुंती ने कर्ण से क्या कहा?

      उत्तर- कुंती ने गद्गद् स्वर में कहा कर्ण! यह समझो कि तुम केवल सूत-पुत्र ही हो। तो राधा तुम्हारी माँ है, अधिरथ तुम्हारे पिता। तुम राजकुमारी पृथा की कोख से उत्पन्न हुए हो। तुम सूर्य के अंश हो। दुर्योधन के पक्ष में होकर तुम अपने भाइयों से ही शत्रुता कर रहे हो। धृतराष्ट्र के लड़कों के आश्रित रहना तुम्हारे लिए अपमान की बात है। तुम अर्जुन के साथ मिल जाओ, वीरता से लड़ो और राज्य प्राप्त करो। वे भी तुम्हारे अधीन रहेंगे और तुम उनसे घिरे हुए प्रकाशमान होओगे।"



      प्रश्न-6  कर्ण ने कुंती से क्या कहा?

      उत्तर- कर्ण ने कुंती  से क्या कहा- "माँ! यदि इस समय मैं दुर्योधन का साथ छोड़कर पांडवों की तरफ़ चला गया, तो लोग मुझे ही कायर कहेंगे। अब, जब युद्ध होना निश्चित हो गया है, तो मैं उनको मझधार में कैसे छोड़ जाऊँ? आज मेरा कर्तव्य यही है कि मैं पांडवों के विरुद्ध सारी शक्ति लगाकर लड़ूँ लेकिन हाँ, तुम्हारी भी बात एकदम व्यर्थ नहीं जाएगी। अब मैं यह करूंगा कि अर्जुन को छोड़कर और किसी पांडव के प्राण नहीं लूंगा। या तो अर्जुन इस युद्ध में काम आएगा, या मैं।"