एक तिनका
प्रश्न / उत्तर
प्रश्न-17 नीचे दी गई कविता की पंक्तियों को सामान्य वाक्य में बदलिए।
जैसे-एक तिनका आँख में मेरी पड़ा-मेरी आँख में एक तिनका पड़ा।
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे-लोग कपड़े की मूँठ देने लगे।
(क) एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा- …………………………………………
(ख) लाल होकर आँख भी दुखने लगी- …………………………………………
(ग) ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी- …………………………………………
(घ) जब किसी ढब से निकल तिनका गया- ………………………………….
उत्तर – (क) एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा – एक दिन जब मुंडेरे पर खड़ा था।
(ख) लाल होकर आँख भी दुखने लगी – आँख भी लाल होकर दुखने लगी।
(ग) ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी – बेचारी ऐंठ दबे पाँवों भागी।
(घ) जब किसी ढब से निकल तिनका गया – जब तिनका किसी ढंग से निकल गया।
प्रश्न-18 ‘एक तिनका’ कविता में किस घटना की चर्चा की गई है, जिससे घमंड नहीं करने का संदेश मिलता है?
उत्तर – ‘एक तिनका’ कविता में उस दिन की घटना की चर्चा की गई है जब कवि घमंड में मुंडेर पर खड़ा था और उसकी आँख में एक तिनका उड़कर गिर गया। तिनका आँख में गिरते ही कवि बेचैन हो गया। तिनके के कारण उसकी आँख लाल हो गई और दर्द के मारे वह रो पड़ा। आँख से तिनका निकालने के लिए आसपास के लोग प्रयत्न करने लगे। जब तिनका निकल गया तब जाकर उसे आराम मिला। इस घटना ने लेखक का सारा घमंड चूर-चूर कर दिया। उसकी आँखें खुल गई। कवी को समझ आ गया कि घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि एक छोटी सी चीज़ भी हमें परेशान कर सकती है।
इस घटना के माध्यम से कवि ने संदेश दिया है कि हमें स्वयं पर कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए। एक तुच्छ व्यक्ति या वस्तु भी हमारी परेशानी का कारण बन सकता है। हर वस्तु का अपना महत्व होता है।
प्रश्न-19 ‘एक तिनका’ कविता में घमंडी को उसकी ‘समझ’ ने चेतावनी दी-
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए।
इसी प्रकार की चेतावनी कबीर ने भी दी है-
तिनका कबहूँ न निंदिए, पाँव तले जो होय|
कबहूँ उड़ि आँखिन परै, पीर घनेरी होय||
• इन दोनों में क्या समानता है और क्या अंतर? लिखिए।
उत्तर - समानता –
i. तिनके का प्रयोग दोनों काव्यांश में उदाहरण के लिए किया गया है।
ii. दोनों काव्यांश में घंमड ना करने की शिक्षा दी गई है।
अंतर –
पहले काव्यांश में कवि हरिऔध जी ने हमें घमंड न करने की सीख दी है क्योंकि एक तिनका भी हमारे अहंकार को चूर कर सकता है।
दूसरे काव्यांश में कबीर जी ने हमें घमंड न करने तथा किसी को भी तुच्छ न समझने की सीख दी है। उनके अनुसार कभी भी दूसरे व्यक्ति को छोटा समझकर उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए।